वृद्धि और विकास के बारे जानना चाहते है तो आइऐ सबसे पहले जानते है वृद्धि और विकास का अर्थ ,क्या होता है? फिर परिभाषा भी जानेंगे।

वृद्धि और विकास वे प्रक्रियाएं हैं जिनमें किसी व्यक्ति का शारीरिक, मानसिक, सामाजिक और भावनात्मक विकास शामिल होता है।
प्रायः वृद्धि और विकास को समानार्थक अर्थ में प्रयोग किया जाता है नि:संदेह दोनों ही सब आगे बढ़ने की ओर संकेत करते हैं परंतु मनोवैज्ञानिकों की दृष्टि से इन दोनों संप्रदायों में कुछ मौलिक अंतर है वृद्धि तथा विकास के अलग-अलग अर्थों को समझने के लिए इनके अंतर को समझना आवश्यक होगा।
सामान्य रूप से वृद्धि शब्द का प्रयोग कोशिकीय वृद्धि की प्रक्रिया के लिए किया जाता है जबकि विकास शब्द का प्रयोग वृद्धि के फलस्वरूप शरीर के समस्त अंगों में आए परिवर्तन को संगठित कार्यक्षमता बढ़ोतरी की प्रक्रिया से है।
वृद्धि का परिभाष

मेइडिथ के अनुसार-
“कुछ लेखक अभिवृद्धि का प्रयोग केवल आकार की वृद्धि के अर्थ में करते हैं और विकास का विभेदीकरण या विशिष्टकारण के अर्थ में। “
अर्नोल्ड गेसेल के अनुसार-
“वृद्धि पर्यावरण का नहीं अपितु जीवन का एक कार्य हैं।”
वृद्धि एक ऐसी प्रक्रिया है जो इतनी जटिल और इतनी संवेदनशील है कि इसके प्रबल स्तिथरीकरण के लिए बाह्य कारकों के बजाय आंतरिक कारक उत्तरदाई होते हैं जो वृद्धि की प्रवृत्ति के सकल प्रतिरूप और दिशा के संतुलन को बनाए रखते हैं
वृद्धि शब्द का प्रयोग कोशीय वृद्धि (सेल्यूलर मल्टीप्लिकेशन) की प्रक्रिया के लिए किया जाता है।
वृद्धि शब्द का एक जैविक / भौतिक अर्थ भी होता है यह शरीर की आकार ऊचाई और भार वृद्धि जैसे उन मानको से सम्बंधित हैं, जिन्हें मापा जा सकता है।
मानव वृद्धि एक निश्चित समय तक चलने वाली एकाकी प्रक्रिया है।
वृद्धि मात्रात्मक परिवर्तन को संदर्भित करती है
और परिपक्वता प्राप्त होने पर रूक जाता है इसमें शारीरिक अनुपात में होने वाले परिवर्तन भी सम्मलित रहते हैं। जैसे ऊंचाई, वजन आदि में
वृद्धि शब्द का उपयोग उन परिवर्तनों के लिए किया जाता है इन संख्याओं या राशि में मापा जा सकता है उदाहरण के लिए आकार में परिवर्तन, शरीर का अनुपात में दांतो की संख्या आदि।
विकास का अर्थ

विकास से तात्पर्य परिवर्तन की उस प्रगतिशील शृंखला से भी है जो परिपक्वता और अनुभव के परिमाण स्वरूप निर्मित होती है।
वृद्धि और विकास की परिभाषा में उपर्युक्त हम जान चुके हैं वृद्धि की परिभाषा और अब जानेंगे विकास की विभिन्न मनोवैज्ञानिको की परिभाषा और विकास क्या हैं?
विकास का परिभाषा:-
बेयर ने विकास को परिभाषित करते हुए कहा है कि,विकास और विकास का अर्थ परिभाषा
“विकास एक व्यवहारिक परिवर्तन है जिसके लिए कार्य रचना की आवश्यकता होती है और कार्य रचना के लिए समय की आवश्यकता होती है, लेकिन आयु के रूप में परिभाषित किए जाने के लिए पर्याप्त नहीं है।”
इस दृष्टिकोण से विकास में अधिगम अनुभव का एक संग्रह है जिन्हें बालक पर्यावरण के साथ अंतः क्रिया की प्रक्रिया में प्राप्त करता है।
बोरिंग के अनुसार-
“विकास से हमारा अभिप्राय शरीर के अंगों के आकार में होने वाले परिवर्तनों से है और जैसे-जैसे वृद्धि होती जाती है विभिन्न अंगों का क्रियात्मक इकाईयों के रूप में एकीकरण होता जाता है। “
हरलॉक के शब्दों में-
“विकास बड़े होने तक ही सीमित नहीं है वरन इसमें प्रौढ़ावस्था के लक्ष्य की ओर परिवर्तनों का प्रगतिशील क्रम निहित रहता है विकास के फलस्वरूप व्यक्ति में नवीन विशेषताएं तथा नवीन योग्यताएं प्रकट होती हैं।”
वुडवर्थ के अनुसार–
“विकास अनुवांशिकता और पर्यावरण दोनों पर निर्भर करता है विकास अनुवांशिकता और पर्यावरण की अंतः क्रिया का एक उत्पाद है।”
विकास सतत एवं और आजीवन चलने वाली बहुमुखी प्रक्रिया है।
विकास गर्भधान के समय से शुरू होता है और मृत्यु तक जारी रहता है।
विकास परिवर्तनीय है गर्भधान के क्षण से मृत्यु तक एक व्यक्ति में लगातार परिवर्तन होता रहता है
विकास की अवधारणा एक गुणात्मक अवधारणा है इसे ना तो नापा जा सकता है और ना ही व्यवहारिक परिस्थिति में अवलोकन के माध्यम से इसका पूर्ण किया जा सकता है।
किसी बालक के जीवन के कई वर्ष से मिलकर विकास की प्रक्रिया का एक चरण निर्मित होता है और इसकी कुछ महत्त्वपूर्ण विशेषताएं भी होती है।
विकास में कोई रुकावट अंतराल नहीं होता है कुछ चरणों में विकास तेज होता है और कुछ चरणों में धीमा हो सकता है विकास को कुछ हद तक जीवन परिस्थितियों से संशोधित किया जा सकता है
शारीरिक विकास कभी-कभी अनुमानित होता है क्योंकि यह विकास के समान पैटर्न का अनुसरण करता है जैसे सेफेलोकॉडल और प्रॉक्सिमोडिस्टल विकास आकार में रैकिंग नहीं है या सर्पिल है या जीवन भर आगे पीछे हो सकता है।